मज़दूर यानी मेहनतकश लोग जो अपने मजबूत कंधों पर देश को ढोते है,अपने हाथों से निर्माण करते है,अपने साहस से उत्पादन में सहभागी बनते है,इसके बदले में उन्हें मिलती है रोटी… कपड़ा और मकान की लड़ाई तो अभी जारी है। कोरोना ने केवल जिंदगी ही नही बदली सब कुछ बदल गया है,रोटी की चिंता पर जीने की चिंता हावी हो गई है….कोल्डड्रिंक के एक विज्ञापन की पंच लाइन डर के आगे जीत है को कोरोना काल के लॉक डाउन ने बदल दिया है।
अब सब कह रहे है डर के आगे घर है।
20 मार्च के बाद मानो दुनिया ही बदल गई है,जनता कर्फ्यू से लॉक डाउन 3.0 तक आते आते जीने के तरीके बदल गए,उसूल बदल गए,उम्मीदे दम तोड़ने लगी,भविष्य का अंधेरा धैर्य को निगल गया।
जो जहाँ था वही रहे की धारणा दरक गई और जो भी प्रवासी थे वे निकल पड़े अपने स्थाई पते की और,अपनी माटी अपना गांव चल पड़े पांव पांव।
सर पर गठरी का बोझ उतना नही था जितनी चिंता घर पहुंचने की थी। जिसे जो साधन मिला उसी से घर की राह पकड़ ली।
रास्ते मे जो मिला खा लिया नही मिला तो उम्मीदों को ही गटक लिया।
लॉक डाउन 3.0 पूरा होने को है और पूरे देश के राजमार्ग प्रवासी मजदूरों से भरे पड़े है,लोग किसी तरह अपनी मिट्टी की के पास लौट जाना चाहते है।
प्रवासी मज़दूरों के लिए खूब चर्चाएं भी हुई,सरकार ने श्रमिक एक्सप्रेस भी चलाई,राह चलते स्थानीय निवासियों ने खूब मदद भी की सभी राज्य सरकारों ने अपने तई खूब प्रयास किए पर एक कमी रह गई….मज़दूर का विश्वास दरक गया,हौसला टूट गया मन मे भय समा गया जीना है तो घर पर मरना है तो घर पर।
यह सब इसलिए भी हुआ कि कोरोना काल ने जो विवशता दिखाई दी है उसने सब उम्मीदे तोड़ दी।
प्रवासी मज़दूर किसी के लिए समस्या,किसी के लिए मुद्दा,किसी के लिए आफ़त तो किसी के लिए राजनीति बन गए है। लेकिन कोई भी मज़दूरों के पालयन को लेकर राष्ट्रीय नीति बनाने की बात नही कर रहा है।
जानकर बताते है कि प्रवासी मज़दूरों के पलायन से बिहार,उत्तरप्रदेश, झारखंड, उड़ीसा,पश्चिम बंगाल,मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़,राजस्थान जैसे राज्यो की डेमोग्राफी ही बदल जाने वाली है,वही महाराष्ट्र,गुजरात,आंध्रप्रदेश, तेलंगाना,कर्नाटक,तमिलनाडु दिल्ली,हरियाणा,पंजाब जैसे राज्यों ने निर्माण और उत्पादन सीधे सीधे प्रभावित होगा।
इसलिए मज़दूर पलायन को लेकर राज्य सरकारों का रवैया भी अलग अलग है।
तमाम चर्चाओं,बहसों और अध्ययनों के बाद जो निष्कर्ष निकाला है उसके अनुसार प्रवासी मज़दूरों के लिए राष्ट्रीय नीति बनाई जानी चाहिए। ताकि उनकी आजीविका, रहन-सहन, जरूरतों और सामाजिक सुरक्षा पर सर्वमान्य योजनाए बन सके।
बहरहाल मज़दूर राजमार्ग पर है,सरकार क़वारेन्टीन है और देश को मज़दूरों के पांव के छाले दिख रहे है। उम्मीद है कोरोना काल प्रवासी मज़दूरों के लिए भी कोई सौगात लायेगा।
प्रकाश त्रिवेदी