कविता/ग़ज़ल

मुझसे मत पूछना मेरा पता

मुझसे मत पूछना मेरा पता अभी कहीं बीते वक़्त की यादों में सिमटा मिलूंगा जो कहानी बंद कर दी थी उन्हें पढ़ता हुआ मिलूंगा मै उन खूबसूरत पलो में कहीं खोया मिलूंगा जो हस्ते दिखूं तो समझ लेना मै फिर उन रंगों में रंग रहा हूं बस वापिस समेट रहा

स्त्री

करुणा के अभाव में एक स्त्री अपने, आस पास के भँवर को छाँव से ढक, देती हैं  , हम इसकी सहनशीलता का मापदंड नहीं तय कर सकते, एक स्त्री भले अपना जीवन, विनम्रता की करछी चलाकर, व्यतीत करती हैं, लेकिन मन में बाँध कर रखती हैं वो बंद आवाज़ जिसके

THE SPILT INK: इकरारनामा

1) पूछने को तुझसे कितने सवाल रखे हैं, ख़त तेरे आज भी हमने संभाल रखे हैं। यूँ तो नहीं है तेरा दिया और कुछ भी, सूखे हुए फूल हमने फिलहाल रखें हैं। अब तू चला ही गया तो कोई बात नहीं, दुश्मन हमने यहाँ और भी पाल रखें हैं। ख़्वाहिश

मज़दूर – Manish Jha

सूर्य हमारा अस्त हो गया , हम कब तक दीप जलाएँगे ? घर में बैठे भूखे बच्चे, बिलक – बिलक कर रो रहे हैं । खाली पेट ही जाग रहें , और खाली पेट ही सो रहे हैं ।। जमा पूँजी भी खत्म हो गया, हम कब तक उन्हें खिलाएँगे

भाई बहन का प्यार और अनबन

वो उसकी मासूम सी शरारतें , मेरे बाहर जाते वक्त गाड़ी की चाबी छुपा लेना , अच्छा लगता है…. मेरे साफ़ किए हुए रूम को फिरसे खराब कर देना, और फिर मेरे गुस्सा होने पर प्यार से दीदी बोलकर उसका गले लगाना , अच्छा लगता है…. उसका वह मेरे लिए

बहन नही होगी तो राखी कौन बांधेगा

बहन नही होगी तो राखी कौन बांधेगा। प्यार से भइया कौन बुलायेगा । बहन नही होगी तो राखी कौन बांधेगा। राखी के दिन तोहफ़ा और प्यार से पैसा कौन मांगेगा। बहन नही होगी तो राखी कौन बांधेगा। अपने हिस्से की  chocolate छुपा कर भाई को कौन देगा। सारा दिन कौन

THE SPILT INK: हे मानव! – भावना शर्मा

तुम क्यों पल भर की मौत से डरते हो मानव? कभी देखा है किसी भूखे बच्चे को कचरे में से खुशियां ढूंढते? तुम क्यों पल भर की तड़प से डरते हो मानव ? कभी देखा है रास्ते के किनारे बूढ़ी हथेलियों को ठिठुरते? तुम क्यों पल भर की घुटन से

नारी – दीपानिता सांक्रेटिक

नारी तू माता हैं, तू संपदा हैं, फिर क्यों समाज की बेड़ियों से, बांधता तुझे संसार हैं? और सोने की मोल में क्यों तोलता तुझे हर बार हैं?   नारी तू बेटी है, तू माता हैं, फिर तेरी चोट पे कोई नहीं क्यों रोता हैं? तेरी इन बलिदानों को अनसुना

THE SPILT INK: बेटा – मनीष झा

सड़क किनारे खंभे के नीचे , वह किताब लेकर बैठा था | हाथों में किताब , आँखों में ख्वाब लेकर बैठा था ।। ज़माने के ताने वह दिल में , बेहिसाब लेकर बैठा था । गरीब घर का इकलौता बेटा , घर का हिसाब लेकर बैठा था ।। कर्ज़ में

The Spilt Ink: एक सवाल – नेहा थापा 

अब तुम दूर हो, बेशक मजबूर नहीं हो, मजबूर नहीं हो झूठ बोलने के लिए, मजबूर नहीं हो किसी को जबरदस्ती अपना बनाने के लिए, मजबूर नहीं हो बाहों में किसी और को भर कर किसी और से मोहब्बत की बातें करने के लिए, क्योंकि अब तुम साथ ही तो

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