कविता/ग़ज़ल

तू आज जी ले, कल शायद ना हो – Shubhi Jaiswar

तू  आज जी ले, कल शायद ना हो।।। तमाम कोशिश कर कल शायद ना हो।।। तू दिल की बात करता है आ तुझे दिल ही दिखा दे।।। तू देश की बात करता है आ तुझे अमन सीखा दे।।। वो निर्भया थी , जो लड़ी थी आज स्त्री घबराती है ,

रहते थे घर से दूर, पर घर आने को तरसते थे – Rohan Kedia

रहते थे घर से दूर, पर घर आने को तरसते थे। वीडियो कॉल पर आंसू छिपाते , पर तकिए में बरसते थे। खाना कभी- रोज नहीं होता, पर झूठ घर पे बोलते थे, बोलते  ” ठिक हूँ !!”, पर अकेले में रोते थे, साथ नहीं रहते, पर साथ रहने को

गुमसुम रहना पसंद करता हूँ – बिकी खड़का

हाँ, मैं गुमसुम रहना पसंद करता हूँ। भरी महफ़िल में कम और अकेले में खुद से ज्यादा बातें करता हूँ। इस भागदौड़ में खुद को खोने से डरता हूँ, किसी और से नहीं, अपने से थोड़ा ज्यादा मतलब रखता हूँ। दूसरों की बातों पर नहीं, खुद की सोच पर ज्यादा

THE SPILT INK: किससे कब के …… – भावना शर्मा

किससे कब के कुछ पुराने कुछ कल के कुछ अध्मरे से कुछ उमंग भरे । कईयों के किरदार कहीं भूले से कुछ एक खुद से मिले जुले से कुछ बेरंग है तेरी जिंदगी सी और कई के रंग कहीं खोये से । कहीं पर शब्दों की कमी है कहीं पर

अंतर्राष्ट्रीय महिला स्वास्थ्य दिवस के मौके पर एक कविता – काजल कुमावत

देख कर हो जाता है हलाल बेहाल | आजाते हे ये, बीना दिये पेगाम ।। हा भाई हा… मै कर रही हू पीरियड्स की बात, पड़ जाता हे मेहगा निकलना दिन और रात, जो लगा जाते हे हम लड़कियाँ के वाट..  होता है इनका रंग लाल,  पीरियड्स, मेंसुरेशन, ओर भी

कहाँ हो माँ, मुझे आप बहुत  याद आती हैं माँ  – अभय कुमार

कहाँ हो माँ, मुझे आप बहुत  याद आती हैं माँ  वो देर तक सोना और डाट कर सुबह जगाना  वो सुबह बहुत याद आती हैं माँ  कहाँ हो माँ, मुझे आप बहुत  याद आती हैं माँ वो रात को सोते समय सर पर हल्के से हाथ रखना और सर को

मेरी 8GB की तिजोरी – समर्थ भावसार

लोकडाउन में …. एक 8 GB की तिजोरी हाथ लगी अरसे तो नही , बस पुरानी बात लगी दिखे पुराने मित्रो के अजीबोगरीब चित्र खीचने के अंदाज़ भी विचित्र ताज़ा हुईं यादें , बात हो गयी हाथ बराबर ज़िन्दगी से मुलाकात हो गयी उसमे कुछ फोटो हमारे बचपन के है

जीत की तलाश कर – मृदुल कुमार ओझा

तुम अभेद्य हो विराट हो प्रचंड पार्थ की तरह मिलेंगे मार्ग में तुम्हें शत्रु रात की तरह रात्रि न विराम की शक्ति श्री प्रणाम की भेद दो प्रपंच तुम तोड़ दो ये रंच तुम विजय तुम्हारे पास हो पुनः ये प्रयास कर है भूमि कुरुक्षेत्र की जीत की तलाश कर।।(1)

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