अंतर्राष्ट्रीय महिला स्वास्थ्य दिवस के मौके पर एक कविता – काजल कुमावत

देख कर हो जाता है हलाल बेहाल |
आजाते हे ये, बीना दिये पेगाम ।।
हा भाई हा…
मै कर रही हू पीरियड्स की बात,
पड़ जाता हे मेहगा निकलना दिन और रात,
जो लगा जाते हे हम लड़कियाँ के वाट..
 होता है इनका रंग लाल,
 पीरियड्स, मेंसुरेशन, ओर भी है कई इसके नाम,
 सेहना पड़ता है इन्हें सुबह और शाम,
 ये चार दिन नहीं होते इतने भी आम,
 की कर सके कुछ समय आराम,
 पर छौडो…
 क्या जारी कर सकोगें तुम फरमान??
 ये है तो एक वरदान,
 जससे मां पा लेती है संतान,
और चलता जीससे ये संसार,
 फिर क्यु हो रहे लोग इससे शर्मसार??
उतारना हे हर माँ का कर्ज,
सेह कर से भायानक दर्द,
कहते हे जो खुद को मर्द,
क्या वो भी सहन कर सकेगें दर्द??
काजल कुमावत 
उज्जैन 

 

 

 

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