रहते थे घर से दूर, पर घर आने को तरसते थे।
वीडियो कॉल पर आंसू छिपाते , पर तकिए में बरसते थे।
खाना कभी- रोज नहीं होता, पर झूठ घर पे बोलते थे,
बोलते ” ठिक हूँ !!”, पर अकेले में रोते थे,
साथ नहीं रहते, पर साथ रहने को तरसते थे,
मुश्किल हैं दिल को समझाना, पर एक “वजह” से बंधे थे |||
ना कभी सोचा, ना कभी देखा, पल ऐसा भी कभी आएगा,
काम के बिच, अरमान पूरा हो जायेगा,
कोरोना आतंक फैलाएगा, पर साथ खुशिया भी लाएगा,
सपना जो था परिवार के बिच रहने का, वो हकीकत बन जायेगा |||
वो हकीकत बन जायेगा……!!!
वो हकीकत बन जायेगा……!!!
From,
Rohan Kedia