नारी – दीपानिता सांक्रेटिक

नारी तू माता हैं, तू संपदा हैं,

फिर क्यों समाज की बेड़ियों से,

बांधता तुझे संसार हैं?

और सोने की मोल में

क्यों तोलता तुझे हर बार हैं?

 

नारी तू बेटी है, तू माता हैं,

फिर तेरी चोट पे

कोई नहीं क्यों रोता हैं?

तेरी इन बलिदानों को

अनसुना करते हर बार हैं?

 

नारी तू गृहणी है, तू अन्नदाता हैं,

तेरी हाथों का स्वाद

सबको ही तो भाता हैं?

फिर क्यों हर बात पर,

तुझे तेरे घर से निकाला जाता हैं?

 

नारी तेरी महिमा अपरम्पार हैं

तू है तो ही ये संसार हैं

फिर भी तू क्यों लाचार हैं?

तेरी चरित्र की अपमान पे

उठाती क्यों नहीं तू हथियार हैं?

 

नारी तू जग हैं, जगत धात्री हैं,

फिर अभिमान की बोली में

तेरा सबसे कम भाव हैं?

अब बस भी कर, आवाज़ दे

किस बात का तुझे इंतेज़ार है?

 

तू दुर्गा है, तू काली हैं

राधा की कान की बाली हैं

खेत की हरियाली हैं

धर्मसंकट में दुश्मनों से

डट कर सामना करने वाली हैं॥

 

दीपानिता सांक्रेटिक

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