करुणा के अभाव में एक स्त्री अपने,
आस पास के भँवर को छाँव से ढक,
देती हैं ,
हम इसकी सहनशीलता
का मापदंड नहीं तय कर सकते,
एक स्त्री भले अपना जीवन,
विनम्रता की करछी चलाकर,
व्यतीत करती हैं,
लेकिन मन में
बाँध कर रखती हैं वो बंद आवाज़
जिसके खुल जाने पर होता हैं,
शोर बहुत सारा शोर,
एक तरफ जहाँ आँच में तपती हुई स्त्री झुलस
जाती हैं,
मगर रोम -रोम में भर लेती हैं
विद्रोह का अँगार,
यदि तुम्हें ऐसा प्रतीत
होता हैं कि एक मौन पड़ी स्त्री का जीवन
तुम्हारे बनाए उसूलो में तब्दील हैं,
तो तुम गलत हो,
स्त्री चिंगारी हैं, स्त्री नरम हैं
स्त्री तेज़ भी हैं, स्त्री शीतल भी हैं
यदि अपने आत्मसमर्पण में घिर कर
वो कैद हैं
तो वक़्त आने पर
आज़ाद भी हो सकती हैं
एक स्त्री !!
Rani Singh @samacharline
Lady Shriram College for women, DU