मुंशी प्रेमचंद का मूल नाम लाला धनपतराय था। उनका जन्म 31 जुलाई, 1880 में बनारस के लमही गाँव में हुआ। उनकी साहित्य-रचना में कुल 320 कहानियाँ और 14 उपन्यास शुमार हैं।
यूँ तो मुंशी प्रेमचंद की प्रत्येक रचना जन-जीवन का आईना है, परन्तु ‘गोदान’ हिंदी साहित्य की एक अमूल्य निधि है। संसार की शायद ही कोई ऐसी भाषा होगी जिसमे इस विश्वविख्यात उपन्यास का अनुवाद न हुआ हो। वर्षों पुराना होने के बावजूद इस उपन्यास की मौजूदा समय में भीअद्भुत प्रासंगिकता है। गोदान को पढ़ते समय आपको ऐसा लगेगा मानो यह आपकी ही, आपके आसपास की ही कहानी है,
यह कहानी होरी और धनिया नामक एक कृषि दम्पति के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती हैं। किसी भी ग्रामीण की भाँति होरी की भी हार्दिक अभिलाषा है कि उसके पास भी एक पालतू गाय हो जिसकी वह सेवा करे। इसकी दिशा में किये गए होरी के प्रयासों से आरम्भ होकर यह कहानी कई सामजिक कुरीतियों पर कुठाराघात करती हुई आगे बढ़ती है। गोदान ज़मींदारों और स्थानीय साहूकारों के हाथों गरीब किसानो का शोषण और उनके अत्याचार की सजीव व्याख्या है। भारतीय जन-जीवन का खूबसूरत चित्रण, समाज के विभिन्न वर्गों की समस्याओं के प्रति लेखक का प्रगतिशील द्रष्टिकोण एवं किसानों की दयनीय अवस्था का ऐसा मार्मिक वर्णन पढ़ना ही अपने आप में एक अनूठा अनुभव है । इसी के साथ ही शहरीकरण और नवीन शिक्षित वर्ग की एक कथा इस ग्रामीण कथा के साथ चलती है। कहानी के शहरी युवा नायकों के मनोभाव और अपने उत्तरदायित्वों के प्रति कर्तव्यबोध होने तक की उनकी यात्रा दर्शायी गयी है। कहानी का अंत दुखद है और पाठकों के ज़ेहन में कई सवाल छोड़ जाता है।
गोदान को जहाँ ना सिर्फ एक उम्दा एवं संवेदनशील कहानी पढ़ने के शौक से पढ़ा जा सकता है वहीँ दूसरी ओर इसमें विकसित की गयी विचारधाराएं, नीतियाँ एवं आदर्श भी स्वतः ही मन पर गहरी छाप छोड़ने में सक्षम है । हो सकता है कि प्रेमचंद के कई विचारों से आप सहमत न भी हो पर उस समय में लिखा गया यह उपन्यास पढ़कर आप निराश नहीं होंगे।
Research: Rani@samacharline