इस कौम की आधी ताकत लड़कियों की शादी कराने में जा रही हैं – हरिशंकर परसाई
हरिशंकर परसाई जी हिन्दी साहित्य जगत के महान व्यंगकारो एवं प्रसिद्ध लेखकों में से एक गिने जाते हैं । सबसे पहले इनके द्वारा ही व्यंग को हिन्दी साहित्य में एक विधा रूप प्राप्त हुआ और आगे चलकर उसे मनोरंजन की पुरानी एवं परंपरागत परिधि से बाहर निकालकर समाज कल्याण के हित से जोड़कर प्रस्तुत किया गया। यह एक ऐसे साहित्यकार हैं जिन्होंने व्यंग को एक अलग ही दर्जा दिया हैं।
जीवन परिचय
हरिशंकर परसाई जी का जन्म मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जनपद के जमानी ग्राम में 22 अगस्त सन् 1924 को हुआ था। इन्होंने स्नातक तक की पढ़ाई मध्यप्रदेश में रहकर ही पूरी की। उसके बाद इन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से एम. ए. की डिग्री प्राप्त करी।
18 साल की कम उम्र में ही इन्होंने वन विभाग में अपनी सेवा देेना प्रारम्भ कर दिया था और फिर कुछ समय बाद ही इन्होंने वन विभाग में त्यागपत्र देकर विभाग छोड़ दिया था।
उनकी प्रमुख रचनाएं; कहानी–संग्रह
हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, भोलाराम का जीव; उपन्यास: रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज, ज्वाला और जल; संस्मरण: तिरछी रेखाएँ; लेख संग्रह: तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेइमानी की परत, अपनी अपनी बीमारी, प्रेमचन्द के फटे जूते, माटी कहे कुम्हार से, काग भगोड़ा, आवारा भीड़ के खतरे, ऐसा भी सोचा जाता है, वैष्णव की फिसलन, पगडण्डियों का जमाना, शिकायत मुझे भी है, उखड़े खंभे , सदाचार का ताबीज, विकलांग श्रद्धा का दौर, तुलसीदास चंदन घिसैं, हम एक उम्र से वाकिफ हैं, बस की यात्रा; परसाई रचनावली (छह खण्डों में)। विकलांग श्रद्धा का दौर के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किए गए।
हरिशंकर परसाई जी ने अपने रचना की भाषा शैली को कुछ इस तरह से प्रयोग किया है कि इनकी रचना किसी भी पढ़ने वाले को वास्तविकता से जोड़ देती थी और ऐसा महसूस होता था मानो जैसे कि व्यंग स्वरूप कहानी को लिखने वाला लेखक उसके सामने ही बैठ कर उस कहानी को प्रस्तुत कर रहा है। इन्होंने सबसे पहले जबलपुर में वसुधा नाम की एक मासिक पत्रिका निकाली थी इसके बाद ही परसाई जी ने बहुत सारी व्यंग कहानियों की रचना की।
इन्होंने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में जुड़े भ्रष्टाचार और शोषण पर भी व्यंग किया है। जिसका हिन्दी साहित्य जगत में एक विशेष स्थान है। ऐसा माना जाता है कि परसाई जी ने लिखने की शुरुआत अपनी मातृभाषा से करी।
अपनी प्रतिभा और मेहनत के दम पर बहुत ही कम समय में इन्होंने अपनी पहचान दूर दृष्टि वाले एक ऐसे लेखक के रूप में कर ली थी जिनकी सोच और समझ सामान्य लोगो से बहुत आगे थी। इनकी रचनाएं समाज के रूढ़िवादी ढांचे पर गहरा प्रहार करती हैं।
हिंदी साहित्य जगत के महान रचयिता एवं व्यंगकार हरिशंकर परसाई जी की मृत्यु 10 अगस्त सन 1995 में जबलपुर, मध्यप्रदेश में हुई थी।
Rani Singh @samacharline
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