मेरी 8GB की तिजोरी – समर्थ भावसार

लोकडाउन में ….
एक 8 GB की तिजोरी हाथ लगी
अरसे तो नही , बस पुरानी बात लगी
दिखे पुराने मित्रो के अजीबोगरीब चित्र
खीचने के अंदाज़ भी विचित्र
ताज़ा हुईं यादें , बात हो गयी
हाथ बराबर ज़िन्दगी से मुलाकात हो गयी
उसमे कुछ फोटो हमारे बचपन के है
मतलब ये नही के अभी हम पचपन के है
ज़िन्दगी समय के अभाव में भाव मांगती है
अब मुछे बड़ी हो गयी , ताव मांगती है
साथ में पापा की पुरानी गाड़ी दिखी
माँ की पहनी मेरे पसन्द की साड़ी दिखी
वो चीज़े अब है , उस समय कीमती न थी
दादाजी की चमड़ी तब रेशमी न थी
स्कूल के मैदानों की घास में ऐश दिखे
मॉनिटर और स्कूल कैप्टेन के बैच दिखे
सबके पढ़ाने के प्रयत्न का अर्थ हो गया हूं
मैं आज इतना लिखने में भी समर्थ हो गया हूं
ज़िन्दगी इतिहास दोहराती है , इसका यही अंदाज़ है
अगर मन ज़िंदा हो , तो सब आस पास है

कवि समर्थ भावसार
उज्जैन , म.प्र.

 

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