प्रकृति और 2020 – मानसी जोशी

बीते कुछ सालों में मनुष्य ने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रकृति से कई बार छेड़छाड़ करने की कोशिश की है , जिसमे वो हर बार सफल भी हुआ है, फिर चाहे वो बात हो बड़ी बड़ी फक्ट्रियां बनाने के लिए वनों के कटाओ की, या फिर उन्ही फैक्टरियों का बेकार सामान शुद्ध नदियों में डालने की, और फैक्टरियों  के धुए को खुले आसमान में उड़ाने की। इंसान की वजह से तो नीला आसमान  बचा और ना हरे भरे जंगल और खुले मैदान। ये सभी प्रदूषण के बीच में कहीं खो कर रह गए। पर प्रकृति ने इंसान को उसकी करतूतों के लिए हर बार क्षमा ही किया। प्रकृति ने माँ बनकर हमेशा ही हमारी रक्षा की और हमारी जरूरतो को पूरा किया, परंतु इंसान ने उसे नष्ट करने का प्रयास कभी नहीं छोड़ा। पर शायद आज वर्ष 2020 में प्रकृति ने और ईश्वर ने इशारा किया है की अब बहुत हुआ , जो इंसान कई वर्षो से प्रकृति को नष्ट करता आया है आज उसे ही इसका प्रकोप भी खुद ही सहन करना होगा।

 

वर्ष 2020 की शुरुआत हुई ही थी की कोरोना नामक महामारी ने भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को अपनी चपेट में लिया, चीन के वुहान शहर से शुरू हुई ये महामारी आज पूरे विश्व में तेज़ी से फ़ैल रही है। आज दुनियाँ भर में कोरोना वायरस संक्रमितों की संख्या 77.15 लाख से अधिक हो गयी है, और अब तक 4.27 लाख लोग इस महामारी के कारण अपनी जान भी गवा चुके है। भारत में भी कोरोना महामारी से संक्रमितों का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है , जो की थमने का नाम नहीं ले रहा सबसे ज्यादा दुःख की बात तो ये है की इस महामारी की अब तक कोई वैक्सीन नहीं पाई गयी है। संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण प्रमुख इंगर ऐंडरसन ने भी कहा था कीप्रकृति हमे कोरोना वायरस महामारी और जलवायु संकट के जरिये एक संदेश भेज रही है, एक के बाद एक हानिकारक चीज़े करके हम प्रकृति पर दबाव डाल रहे हैं, हमें पहले भी कई बार ये सन्देश मिल चुका है की यदि हम प्रकृति की देखभाल नहीं कर पाए तो प्रकृति हमसे इसका बदला जरूर लेगी

 

कई वैज्ञानिको का मानना है की अपनी आदतों की वजह से मानव जाती हमेशा से ही ऐसी बीमारियों का शिकार रही है और यदि ऐसे ही चलता रहा तो आने वाले समय में मानव जाती का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। वैज्ञानिको की बातों का अर्थ यही है की प्रकृति हमसे बदला ले रही है और कोरोना महामारी ऐसी महामारी है जो लाखों लोगों की जान लेकर सभ्यताएं उजाड़ने की क्षमता रखती है

कोरोना महामारी के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए पूरे विश्व के अनेक देशो में तालाबंदी कर दी गयी , भारत में भी तालाबंदी हुई जिससे प्रकृति में थोड़ा बहुत सुधार भी देखने को मिला, परंतु फिर भी इंसान अपनी हरकतों से बाज नहीं आया। तालाबंदी होने के कारण वनों में गैर कानूनी शिकार की गतिविधियाँ देखने को मिली। भारत के असम में स्तिथ काजीरंगा नेशनल पार्क में तालाबंदी के एक हफ्ते के अंदर ही 10 शिकार के मामले सामने आये, और राजस्थान में भी 10 शिकार की घटनाये हुई। इन शिकार के कारण कई प्रजातियों की विलुप्त हो जाने की सम्भावनाये बढ़ जाती हैं। पर इंसान को तो खुद से मतलब है , प्रकृति से नहीं।

कोरोना महामारी के साथ साथ अनेक प्राकृतिक आपदायें भी लगातार देखने को मिल रही है, जो जन जीवन पर अपना प्रभाव डाल रही हैं। इस साल कार्बन की मात्रा बढ़ने के कारण जल वायु परिवर्तन तेज़ी से हो रहा है। बदलते तापमान से समुद्री चक्रवातों में वृद्धि हुई है। कोरोना महामारी से जूझ रहे बंगाल को चक्रवात अम्फान और महाराष्ट्र को चक्रवात निसर्ग का सामना करना पड़ा।

चक्रवात अम्फान ने बंगाल के कई क्षेत्रों में 5000 से अधिक पेड़ो को जड़ से उखाड़ दिया , बंगाल में सुन्दरबानो के नष्ट होने के कारण बाघों की जान को भी खतरा पहुंचा।

कहीं चक्रवात बढ़ा तो कही टिड्डी नामक कीड़ों ने देश के कई हिस्सों में उत्पात मचाया और फसलों का नुकसान किया टिड्डियों ने राजस्थान, गुजरात,उत्तरप्रदेश,आदि राज्यों के खेतो में हुई फसलों को भरी नुकसान पहुँचाया, जिससे आने वाले समय में हमें भुखमरी का सामना भी करना पढ़ सकता है

जानवरों का पर्यावरण संरक्षण में बहुत बड़ा महत्व है, परंतु आज इंसानो ने अपनी करतूतों से बेजुबानो को भी नहीं छोड़ा, केरल में एक हथिनी और हिमांचल प्रदेश में एक गाय के साथ हुई एक अमानवीय घटना ने पूरी मानव जाती को शर्मशार कर दिया, यहां कुछ लोगो ने इन दोनों बेजुबानो को खाने में विस्फोटक पदार्थ डाल कर खिला दिया जिससे हथिनी ने तो अपनी जान गवा दी दुःख की बात ये थी की वो हथिनी गर्भवती थी, जिसके कारण उसके अजन्मे बच्चे की भी मृत्यु हो गयी, पर अच्छी बात ये रही की गाय को बचा लिया गया। 

 

देश के राजधानी दिल्ली के साथ साथ कई राज्यों में भूकंप के झटके भी लगातार महसूस हो रहे हैं, जिससे लोगों के जीवन को भारी नुकसान भी पहुंच सकता है, अहमदाबाद में भूकंप के झटको के कारण कच्चे मकानों में दरार तक गयी, ऐसे में आज एक आम आदमी को ही नुकसान पहुंच रहा है।

बढ़ती हुई ग्लोबल वार्मिंग के कारण कई पहाड़ी क्षेत्रों जैसे उत्तराखंड के कई हिस्सों में जंगलों में आग लगने जैसी दुर्घटनाएँ भी देखने को मिल रही है, जिसके कारण कई जानवरों की मृत्यु भी हो गयी और कई पेड़ जलकर राख हो गए, और जो जानवर अपनी जान बचाने में सफल रहे उनका घर जो की जंगल है पूरी तरह जल गया।

इंसानो की लापरवाही के कारण असम के तिनसुकिया जिले के बाघजान क्षेत्र में आयल इंडिया लिमिटेड के गैस के कुँए में 9 जून 2020 को भीषण आग लग गयी, जिसने आस पास के 30 घरो को अपनी चपेट में ले लिया, लोगों के माकन जलकर खाख हो गए  

इस भीषण आग का कारण था इंसानो की लापरवाही, आयल इंडिया लिमिटेड के इस गैस के कुँए में 14 दिन पहले से ही गैस रिसाव हो रहा था जिसकी तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया, जिसके कारण गैस के कुँए में आग लग गयी।

विशाखापत्तनम गैस रिसाव जिसे विजाग गैस रिसाव के नाम से जाना गया, इस दुर्घटना ने 7 मई 2020 को विशाखापत्तनम के वेंकटपुरम गांव में एलजी पॉलिमर उद्योग में अंजाम लिया। ये गैस के रिसाव की एक दुर्घटना थी जिसमे स्टाइरीन नामक केमिकल रिस गया और हवा में मिलते हुए आस पास के गांव में फ़ैल गया। किलोमीटर के दायरे में फैलने से इस गैस ने 11 लोगों की जानें ले ली, इसका कारण भी इंसान की लापरवाही ही थी

गैस रिसाव और गैस में आग लगने के कारण वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा बढ़ी, जो की पेड़ पौंधों के लिए हानिकारक है और ये वायु मंडल में कार्बन की मात्रा भी बढ़ा देता है जिससे ऑक्सीजन की कमी हो जाएगी इसके कारण पौंधो को खाने वाले कीटों की संख्या भी बढ़ सकती है।

ऐसी ही प्राकृतिक आपदाएं हमें ये संकेत दे रही है की अब सम्हले नहीं तो मानव जाती का विनाश निश्चित है। कोरोना के दौर में तालाबंदी के कारण पर्यावरण में पढ़ने वाले प्रभावों को हमें समझना होगा, और इसका गकत इस्तेमाल ना करके हमें पर्यावरण को सुरक्षित रखने के बारे में सोचना होगा इसके लिए सरकार को भी ठोस पर्यावरण नीति बनाने की पहल करनी चाहिए कोरोना महामारी के निपटने के बाद, आने वाले समय में आर्थिक स्तिथि को सुधारने के साथ साथ हमें पर्यावरण सुधारने की दिशा में भी सोचना होगा। प्रकृति को उतना सूंदर बना दें की इंसान को बार बार प्रकृति के नज़ारों को देखने के लिए फिर तस्वीरों मे कैद करने की जरूरत ना पड़े। प्रकृति की रक्षा करना इंसान का पहला धर्म और कर्त्तव्य है , यही प्रकृति ही रूठ गयी तो इंसान का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा

 

मानसी जोशी

 

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