कोरोना वायरस महामारी ने आज पुरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया है। भारत भी आज कोरोना वायरस संक्रमितों की संख्या में विश्व में चौथे स्थान पर आ चुका है । अमेरिका जैसा शक्तिशाली देश भी कोरोना से लड़ने में अभी तक असफल ही रहा है । इस महामारी ने कई वर्गों को अपनी चपेट में लिया, जिसमे अभी तक विश्व भर में लाखो की संख्या में लोगों ने अपनी जानें गवा दी है। लाखों परिवार बिखर गए, कई बच्चे अनाथ हो गए, कई औरतो ने अपने सुहाग को खो दिया, ये पहली बार देखने को मिला की एक महामारी ने इस कदर अपने पैर पसारे की आज हर व्यक्ति इससे भयभीत है ।
इस महामारी ने किसी भी अमीर – गरीब का भेद भाव नहीं किया, समाज का हर वर्ग आज इस महामारी से पीड़ित है, पर फिर भी आज एक वर्ग है जिसे इस वैश्विक महामारी के दौर में सबसे ज्यादा संकटों का सामना करना पड़ा, और वो है हमारे देश का गरीब वर्ग, मजदूर वर्ग, जो रोज़ श्रम करके कमाता था और हर दिन की कमाई से अपना पालन पोषण करता था ।
कोरोना वायरस के बढ़ते हुए संक्रमण को देखते हुए सरकार ने देश भर में पूर्ण तालाबंदी का फैसला लिया, ये फैसला कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए काफी अहम भी था,लेकिन इस फैसले के कारण प्रवासी मजदूरों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा। तालाबंदी के कारण सभी कार्यक्षेत्रों को बंद करना पड़ा था, जिसमे फैक्ट्रियां, निर्माणाधीन इमारते, सड़को का काम आदि रोकना पड़ा। इस कारण जो मजदूर यहाँ काम करते थे उनके लिए ये एक बहुत बड़ी चुनौती बनकर सामने आई, उन्हें तत्कालीन प्रभाव से अपना काम छोड़ना पड़ा, न रोजगार रहा और न ही पैसा। बचा तो सिर्फ एक रास्ता, जो था अपने घर या अपने गांव वापस लौट जाना ।
पर अब सवाल ये था की घर या गांव कैसे लौटा जाये क्यूकी परिवहन की कोई सुविदा तो थी नहीं और न ही जेब में पैसा,घर पहुंचने की उम्मीद और परिवार से मिलने की लालसा में उन्हें मीलों तक पैदल रास्ता तय करना पड़ा।
सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात तो ये थी की, यदि कोई भी प्रवासी मजदूर जो पैदल मीलों का रास्ता तय कर रहा है और कानून में बाधा डालने का दोषी पाया जाता है तो आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 51 के तहत उन्हें एक वर्ष की जेल की सजा भुगतनी होगी या उनपर जुरमाना लगाया जाएगा । परन्तु सुप्रीम कोर्ट ने इन बेबस प्रवासी मजदूरों की समस्या को समझते हुए ये कहा की राष्ट्रीय तालाबंदी के बीच घर पहुंचे की कोशिश करते प्रवासी श्रमिकों पर ये मुकदमा नहीं चलना चाहिए । सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों को ये भी निर्देश दिए की वे प्रवासी मजदूरों के खिलाफ दर्ज किये गयी कोई भी शिकायत या मुक़दमे को वापस ले लें। साथ ही कोर्ट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जल्द से जल्द फंसे हुए कामगारों को घर लाने का आदेश दिया ।
रेलवे को भी निर्देश दिए गए की आने वाले कुछ दिनों में राज्यों को रेलवे अधिक से अधिक श्रमिक स्पेशल ट्रेनें प्रदान करें। आने वाले कुछ समय में रेल और सड़क मार्ग से परिवहन की प्रक्रिया सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशो द्वारा पूरी की जानी है ताकि सभी प्रवासी मजदूर सही सलामत अपने घर पहुंच जाये और उनकी जरूरतों को जैसे, रोजगार, भोजन और राशन की पूर्ती पर अगले चरण में ध्यान दिया जा सके। ये बात कोर्ट की बहुत सराहनीय थी की कोर्ट ने मजदूरों के विषय में चर्चा की और साथ ही ये भी कहा की प्रवासी मजदूरों को अपने रोजगार की समाप्ति के बाद अपने घर वापस भेजे जाने का दबाव बनाया जाता है। वे पहले से ही पीड़ित है ऐसे में पुलिस और सरकार उनके बारे में सोचे और उनपर कोई भी अत्याचार न करें ।
कोर्ट का एक और बड़ा फैसला था जो प्रवासी श्रमिकों के लिए काफी ज्यादा लाभदायक हो सकता है, और वो है रोजगार के अवसर । कोर्ट ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशो में लौटे श्रमिकों को रोजगार की पूर्ती और लाभ योजनाओं का विवरण केंद्र में रखा । जिसमे श्रमिकों को मनरेगा के तहत रोजगार प्रदान करने की बात कही गयी है और साथ ही ये भी कहा की श्रमिकों को होने वाली परेशानियां और उनकी दिक्कतों की अगली सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में 7 जुलाई 2020 को होगी, तब शायद सुप्रीम कोर्ट इन प्रवासी श्रमिकों के लिए कोई बड़ा फैसला ले लें जो इनके लिए लाभदायक हो ।
केंद्र सरकार ने भी श्रमिकों के लिए बड़े कदम उठाये है , हलाकि कई श्रमिकों ने इस पलायन के दौरान अपनी जानें भी गवाई है पर सरकार आज भी इन श्रमिकों के लिए निरंतर प्रयास कर रही है। विपक्ष द्वारा भी कई बार केंद्र सरकार पर श्रमिकों की मांग को लेकर कई व्यंग बाण मरे गए है पर केंद्र सरकार पीछे नहीं हटी ।केंद्र सरकार निरंतर राज्यों से ये अपील कर रही है की वो श्रमिकों का विशेष ख्याल रखे। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी श्रमिकों के लिए एक लाख सत्तर हज़ार करोड़ रुपय के पैकेज की घोषणा भी करी है। सभी श्रमिकों को पांच किलो राशन और एक किलो दाल मुफ्त देने की घोषणा भी हुई।केंद्र सरकार ने 6195 करोड़ रुपय राज्यों के पीडीएस सिस्टम में भी डाले। श्रमिकों को पैदल चलने से रोकने के लिए केंद्र ने राज्यों को नोटिस भी दिया की वो जिस रेलवे स्टेशन पर चाहें ट्रैन मंगवा सकते है। रेल मंत्रालय की और से भी सभी मजदूरों को ट्रेन में खाना और पानी प्रदान करने की बात कही गयी।इसी के साथ सरकार ने इन श्रमिकों के भविष्य को लेकर भी रणनीति बनाई है, जिसमे से सबसे ऊपर है मनरेगा, ये सभी श्रमिक भाइयो को रोजगार का अवसर प्रदान करेगा। इस सबसे ये साबित होता है की सरकार ने इस परिस्थिति से लड़के के लिए कोई भी हथियार नहीं छुपाया और देश की आबादी को बचने के लिए दिन रात कार्य कर रही है।
लाखों परिवार बिखर गए, कई बच्चे अनाथ हो गए, कई औरतो ने अपने सुहाग को खो दिया, ये पहले बार देखने को मिला की एक महामारी ने इस कदर अपने पेअर पसरे की आज हर व्यक्ति इससे भयभीत है ।
–मानसी जोशी