कवि परिचय : मैथिलीशरण गुप्त

मैथिलीशरण गुप्त  (3 अगस्त सन् 1886- 12 दिसम्बर 1964) का जन्म चिरगाँव, झाँसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। मैथिलीशरण गुप्त के पिता का नाम ‘सेठ रामचरण’ और माता का नाम ‘श्रीमती काशीबाई’ था। पिता रामचरण निष्ठावान राम भक्त थे। इनके पिता ‘कनकलता’ उप नाम से कविता किया करते थे । मैथिलीशरण गुप्त की प्रारम्भिक शिक्षा चिरगाँव, झाँसी के राजकीय विद्यालय में हुई । इन्होंने घर पर ही संस्कृत, हिन्दी तथा बांग्ला साहित्य का व्यापक अध्ययन किया। आपकी कविताओं में बौध्द दर्शन, महाभारत तथा रामायण के कथानक आते हैं।

आपकी रचनायें हैं; महाकाव्य: साकेत; खंड काव्य-कविता संग्रह: जयद्रथ-वध, भारत-भारती, पंचवटी, यशोधरा, द्वापर, सिद्धराज, नहुष, अंजलि और अर्घ्य, अजित, अर्जन और विसर्जन, काबा और कर्बला, किसान, कुणाल गीत, पत्रावली, स्वदेश संगीत, गुरु तेग बहादुर, गुरुकुल, जय भारत, झंकार, पृथ्वीपुत्र, मेघनाद वध; नाटक: रंग में भंग, राजा-प्रजा, वन वैभव, विकट भट, विरहिणी व्रजांगना, वैतालिक, शक्ति, सैरन्ध्री, हिडिम्बा, हिन्दू; अनूदित: मेघनाथ वध, वीरांगना, स्वप्न वासवदत्ता, रत्नावली, रूबाइयात उमर खय्याम ।

 

नर हो न निराश करो मन को

 

नर हो न निराश करो मन को

कुछ काम करो कुछ काम करो

जग में रहके निज नाम करो

यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो

समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो

कुछ तो उपयुक्त करो तन को

नर हो न निराश करो मन को ।

संभलो कि सुयोग न जाए चला

कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला

समझो जग को न निरा सपना

पथ आप प्रशस्त करो अपना

अखिलेश्वर है अवलम्बन को

नर हो न निराश करो मन को ।

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ

फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ

तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो

उठके अमरत्व विधान करो

दवरूप रहो भव कानन को

नर हो न निराश करो मन को ।

निज गौरव का नित ज्ञान रहे

हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे

सब जाय अभी पर मान रहे

मरणोत्तर गुंजित गान रहे

कुछ हो न तजो निज साधन को

नर हो न निराश करो मन को ।

 

Research by – Rani @samacharline

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