सड़क किनारे खंभे के नीचे ,
वह किताब लेकर बैठा था |
हाथों में किताब ,
आँखों में ख्वाब लेकर बैठा था ।।
ज़माने के ताने वह दिल में ,
बेहिसाब लेकर बैठा था ।
गरीब घर का इकलौता बेटा ,
घर का हिसाब लेकर बैठा था ।।
कर्ज़ में डूबे थे पिता उसके ,
वह बेटे का फर्ज़ लेकर बैठा था ।
माँ बीमार थी उसकी ,
वो माँ का मर्ज़ लेकर बैठा था ।।
वह दिन भर की थकान लेकर बैठा था ।
सड़क किनारे खंभे के नीचे,
सिर्फ किताब नहीं साहब,
वह कंधे पे पूरा मकान लेकर बैठा था ।।
-मनीष झा
विद्यार्थी
गुवाहाटी, असम