आलेख/व्यंग्य

वन सुरक्षा

  जंगल मूल रूप से भूमि का एक टुकड़ा है जिसमें बड़ी संख्या में वृक्ष और पौधों की विभिन्न किस्में शामिल हैं। प्रकृति की ये खूबसूरत रचनाएँ जानवरों की विभिन्न प्रजातियों के लिए घर का काम करती हैं। घने पेड़ों, झाड़ियों, श्लेष्मों और विभिन्न प्रकार के पौधों द्वारा कवर किया

बाते -मंटो

बंबई आया था कि चंद रोज़ पुराने दोस्तों के साथ गुज़ारूँगा और अपने थके हुए दिमाग़ को कुछ आराम पहुंचाऊंगा, मगर यहां पहुंचते ही वो झटके लगे कि रातों की नींद तक हराम हो गई। सियासत से मुझे कोई दिलचस्पी नहीं। लीडरों और दवा-फ़रोशों को मैं एक ही ज़ुमरे में

मेरी सर्वगुण संपन्न अम्मा

धीरज की उपज अपने अंदर लिए जन्मी हुई तुम जब भी पिताजी के आक्रोश को पीकर सहम जाती हो  और अगले दिन पिघली हुई मोम के जैसे जब -जब अपनी इसी दुनिया को वापस समेटने लगती हैं तो मानो इससे ज़्यादा हैरान करने वाला और कोई दृश्य मुझे  समझ ही

आज की पत्रकारिता! – कौस्तुभ मिश्रा

जब देश  पूर्ण रूप से ग़ुलामी की जंजीरो मे जकड़ा हुआ था और आजादी के लिए फिरंगियों से लड़ रहा था तब देश के कई वीर क्रांतिकारी पत्रकार जैसे सच्चिदानंद सिन्हा,सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, एम एन रॉय इत्यादि ने अपनी जान की  परवाह करें बिना ही राष्ट्र हित मे अपने अपने अख़बार

नेहरू का नार्सीसिज्म है सीमा विवाद की जड़ — शत्रु देश चीन व पाकिस्तान को लेकर नेहरू—गांधी परिवार की भूमिका संदिग्ध – हरीश चंद्र श्रीवास्तव

वर्तमान की व्याख्या इतिहास के बिना नहीं हो सकती। लद्दाख में सीमा पर भारतीय सेना और चीनी सेना के बीच तनाव, झड़प और उसके बाद देश के भीतर के राजनीतिक घटनाक्रम ने फिर से इतिहास के प्रश्नों को फिर ला खड़ा किया है, जिसका उत्तर देश की जनता को मिलना

प्रवासी बंधू और सरकार – मानसी जोशी

कोरोना वायरस महामारी ने आज पुरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया है। भारत भी आज कोरोना वायरस संक्रमितों की संख्या में विश्व में चौथे स्थान पर आ चुका है । अमेरिका जैसा शक्तिशाली देश भी कोरोना से लड़ने में अभी तक असफल ही रहा है ।  इस महामारी

प्रकृति और 2020 – मानसी जोशी

बीते कुछ सालों में मनुष्य ने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रकृति से कई बार छेड़–छाड़ करने की कोशिश की है , जिसमे वो हर बार सफल भी हुआ है, फिर चाहे वो बात हो बड़ी बड़ी फक्ट्रियां बनाने के लिए वनों के कटाओ की, या फिर उन्ही

आत्मनिर्भर का मतलब ? – सुपर्णा मनोज कुमार प्रणामी

आत्मनिर्भर का मतलब यह नहीँ है की आई फोन की जगह लावा का फोन इस्तेमाल करना शुरु कर देना है। इसका मतलब है आई फोन जैसे फोन को निर्माण करने की क्षमता विकसित करनी है। आत्मनिर्भर का मतलब यह नहीं है की तुरन्त BMW को फेककर मारुती पर आ जाना

राजबाड़ा 2 रेसीडेंसी : 🖋 अरविंद तिवारी

📕 बात शुरू करते हैं यहां से…. ▪ “वीडी” यानी भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने 24 जिलों में जो नए अध्यक्ष बनाए हैं उससे उनका एजेंडा साफ हो गया है। ज्यादातर अध्यक्ष 45 साल से कम उम्र के हैं और इनमें भी उन लोगों का बाहुल्य है जो विद्यार्थी

देशव्यापी मज़दूर पलायन… डर के आगे घर है : प्रकाश त्रिवेदी की कलम से

मज़दूर यानी मेहनतकश लोग जो अपने मजबूत कंधों पर देश को ढोते है,अपने हाथों से निर्माण करते है,अपने साहस से उत्पादन में सहभागी बनते है,इसके बदले में उन्हें मिलती है रोटी… कपड़ा और मकान की लड़ाई तो अभी जारी है। कोरोना ने केवल जिंदगी ही नही बदली सब कुछ बदल

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